सनातन धर्म में मानव जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया गया है – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। इनमें से गृहस्थ आश्रम सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यही
सनातन धर्म में मानव जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया गया है – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। इनमें से गृहस्थ आश्रम सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यही
आज का युग भौतिक प्रगति और तकनीकी विकास की नई ऊँचाइयों को छू रहा है, लेकिन इसके साथ नैतिक मूल्यों का पतन भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
यज्ञ भारतीय संस्कृति और वेदों का एक महत्वपूर्ण अंग है। प्राचीन काल से ही यज्ञ को आध्यात्मिक उन्नति, पर्यावरण शुद्धि और स्वास्थ्य लाभ का साधन माना गया है। आधुनिक वैज्ञानिक
दु:ख और सुख जीवन के दो पहलू हैं, लेकिन दु:खों का अनुभव अधिक गहरा और पीड़ादायक होता है। हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी प्रकार के दु:ख का
शिक्षा मनुष्य के विकास का आधार है। यह केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के चारित्रिक, नैतिक, और आध्यात्मिक उत्थान में सहायक होती है। शिक्षा केवल
आयुर्वेद (Ayurveda) भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है, जिसे “जीवन का विज्ञान” कहा जाता है। यह केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं है, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है, जो मनुष्य के
सनातन धर्म और आयुर्वेद में “पंचमहाभूत” का विशेष महत्व है। पंचमहाभूत—आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी—सृष्टि के निर्माण के मूल तत्त्व हैं। इन तत्त्वों से न केवल यह ब्रह्मांड बना
जन्म और मृत्यु, ये दोनों ही जीवन के ऐसे सत्य हैं जो प्रत्येक प्राणी के जीवन चक्र का हिस्सा हैं। वैदिक दृष्टिकोण के अनुसार, जन्म और मृत्यु केवल एक भौतिक
“गोत्र” भारतीय सनातन परंपरा का एक महत्वपूर्ण और प्राचीन तत्त्व है। यह केवल वंश या पितृसत्ता की पहचान नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी वैदिक और वैज्ञानिक अवधारणाएँ भी छिपी
सनातन धर्म के ब्राह्मण ग्रंथ में समुद्र मंथन एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसे केवल देवताओं और असुरों के संघर्ष और सहयोग का वर्णन करने वाली कथा के रूप में नहीं







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