“नासदीय सूक्त: वेदों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति का रहस्य”

सृष्टि की उत्पत्ति का रहस्य प्राचीन काल से ही मानव जिज्ञासा का विषय रहा है। आधुनिक विज्ञान इसे बिग बैंग थ्योरी से समझाने का प्रयास करता है, जबकि विभिन्न संप्रदाय और दार्शनिक परंपराएँ अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर इसकी व्याख्या करती हैं। लेकिन क्या वास्तव में कोई जान सकता है कि सृष्टि की रचना कैसे हुई?

वेदों में सृष्टि की उत्पत्ति से संबंधित सबसे रहस्यमय और गूढ़ विचार ऋग्वेद के नासदीय सूक्त (ऋग्वेद 10.129) में मिलता है। यह सूक्त सृष्टि से पहले की स्थिति, उसकी उत्पत्ति और सृष्टि को जानने की सीमाओं पर विचार करता है। यह केवल धार्मिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक और दार्शनिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस ब्लॉग में हम नासदीय सूक्त का गहन विश्लेषण करेंगे, इसकी व्याख्या करेंगे और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसकी तुलना करेंगे।

Table of Contents


नासदीय सूक्त का परिचय

ऋग्वेद का 10वाँ मंडल, 129वाँ सूक्त नासदीय सूक्त के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें कुल सात श्लोक हैं, जो सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड की गूढ़तम पहेलियों पर प्रकाश डालते हैं।

📜 मंत्र:
“नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्।”
(ऋग्वेद 10.129.1)

अर्थ: सृष्टि के प्रारंभ में न तो सत (अस्तित्व) था और न ही असत (अनस्तित्व)। न आकाश था, न ही इसके पार कुछ और था।

👉 यह मंत्र इंगित करता है कि सृष्टि से पहले न तो कुछ ठोस था, न ही शून्यता। यह आधुनिक विज्ञान की उस धारणा से मेल खाता है, जहाँ बिग बैंग से पहले की स्थिति को ‘अज्ञात’ माना जाता है।


नासदीय सूक्त के प्रमुख सिद्धांत

1️⃣ सृष्टि से पहले की स्थिति

📜 मंत्र:
“न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः।”
(ऋग्वेद 10.129.2)

अर्थ: उस समय न मृत्यु थी, न अमरता, न दिन था, न रात।

👉 यहां यह स्पष्ट किया गया है कि समय और मृत्यु जैसी अवधारणाएँ सृष्टि के उत्पत्ति के पश्चात ही आईं। आधुनिक विज्ञान भी बताता है कि समय का प्रारंभ बिग बैंग के पश्चात ही हुई।


2️⃣ सृष्टि का जन्म कैसे हुआ?

📜 मंत्र:
“किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद्गहनं गभीरम्।”
(ऋग्वेद 10.129.3)

अर्थ: वह सब कहाँ था? किसके संरक्षण में था? क्या वह कोई गहरा जल था? क्या वह कोई अज्ञात अथाह गहराई थी?

👉 इस मंत्र में प्रश्न उठाया गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति किससे हुई? ‘जल’ शब्द का प्रयोग ब्रह्मांड के आधारभूत तत्व के रूप में किया गया है।

यह श्लोक सृष्टि से पहले की अवस्था के रहस्य को गहराई से समझने का प्रयास करता है। यह केवल भौतिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित नहीं है, बल्कि अस्तित्व (Existence) और चेतना (Consciousness) के मूलभूत प्रश्नों को भी उठाता है।

“किम आवरीवः” (क्या वह ढंका हुआ था?)

  • यह प्रश्न उठाता है कि सृष्टि के पहले कुछ था या नहीं?
  • यदि कुछ था, तो वह किस तत्व से बना था?
  • क्या वह किसी अज्ञात शक्ति द्वारा आवृत (ढका हुआ) था, या वह शून्य में विलीन था?

👉 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • यह Singularity की अवधारणा से जुड़ता है, जो बताती है कि बिग बैंग से पहले संपूर्ण ब्रह्मांड अत्यंत सघन और अनिर्धारित अवस्था में था।

“कुह” (वह कहाँ था?)

  • यदि सृष्टि का कोई आधार था, तो वह किस स्थान पर था?
  • यदि कुछ भी नहीं था, तो स्थान (Space) और दिशा (Direction) की अवधारणा कैसे बनी?

👉वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार, समय और स्थान (Time & Space) की उत्पत्ति बिग बैंग के बाद ही हुई
  • इससे पहले कोई निश्चित स्थान या दिशा नहीं थी। बिग बैंग थ्योरी परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करती I

“कस्य शर्मन्” (किसके संरक्षण में था?)

  • क्या इस ब्रह्मांड की रचना किसी विशेष शक्ति या सत्ता द्वारा की गई?
  • यदि कोई रचयिता था, तो वह स्वयं कहाँ से आया?

👉 दर्शनशास्त्र के अनुसार:

  • यह प्रश्न ईश्वर के अस्तित्व से संबंधित है।
  • वेदांत कहता है कि ब्रह्म अनादि और अजन्मा है, इसलिए उसका कोई स्रष्टा (creator) नहीं।
  • विज्ञान भी यह मानता है कि ऊर्जा न उत्पन्न होती है, न नष्ट होती है (Conservation of Energy)। परंतु परमात्मा ऊर्जा नहीं है I परमात्मा क्या है? यह मनुष्य मस्तिष्क के द्वारा ठीक-ठाक समझ पाना असंभव है I वह अव्यक्तम् है इसलिए कोई उसे ऊर्जा आदि के द्वारा व्यक्त करने का प्रयास करते है I

“अम्भः किम आसीत्” (क्या वह जल था?)

  • यहाँ जल (अम्भः) का उल्लेख आया है। क्या सृष्टि जल से बनी थी?
  • क्या जल यहाँ किसी सूक्ष्म तत्व (Primordial Substance) का प्रतीक है?

👉 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • यह प्राचीन भारतीय दर्शन की उस मान्यता को दर्शाता है जिसमें जल को सृष्टि का मूल तत्व माना गया।
  • आधुनिक विज्ञान में भी जल को जीवन का स्रोत माना जाता है।
  • ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार, हाइड्रोजन (Hydrogen) सबसे पहला तत्व था, जो जल का प्रमुख घटक है।

“गहनं गभीरम्” (क्या वह अत्यंत गहरा और रहस्यमयी था?)

  • यहाँ ब्रह्मांड की अनंतता की ओर संकेत किया गया है।
  • क्या सृष्टि एक अनंत गहराई में छिपी हुई थी?

👉 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • यह ब्लैक होल (Black Hole) की धारणा से मेल खाता है, जो अनंत गुरुत्वाकर्षण वाला क्षेत्र होता है।
  • क्वांटम फिजिक्स बताता है कि शून्य से भी कणों की उत्पत्ति संभव है। परंतु कैसे वह नहीं बताती I इसलिए परमात्मा सृष्टि के परम रचयिता है I उसीने सृष्टि की रचना की, रचयिता के बिना किसी भी रचना का हो पाना संभव नहीं है

👉 नासदीय सूक्त हमें यह समझने में सहायता करता है कि सृष्टि की उत्पत्ति का रहस्य इतना गहरा है कि शायद इसे कोई पूरी तरह नहीं जान सकता।


3️⃣ सृष्टि की उत्पत्ति की प्रक्रिया

📜 मंत्र:
“तपसस्तन्महिनाजायतैकं।”
(ऋग्वेद 10.129.4)

अर्थ: “उस (सृष्टि) से पहले महान तप (ऊर्जा) के प्रभाव से एकमात्र तत्व उत्पन्न हुआ।”

👉 यह वैज्ञानिक दृष्टि से ‘सघन ऊर्जा से ब्रह्मांड के विस्तार’ के सिद्धांत से मेल खाता है।

यह मंत्र सृष्टि की उत्पत्ति की प्रक्रिया को समझाने का प्रयास करता है। इसमें तीन प्रमुख तत्वों का उल्लेख किया गया है:

1️⃣ “तपसः” (ऊर्जा या तप)
2️⃣ “महिना” (महान बल या प्रभाव)
3️⃣ “अजायत” (उत्पन्न हुआ)

👉 इसका अर्थ यह हुआ कि अत्यंत तीव्र ऊर्जा और बल के कारण सृष्टि का एक प्रमुख तत्व उत्पन्न हुआ

“तपसः” – ऊर्जा और ताप (Cosmic Energy & Heat)

🔷 “तपस” का सामान्य अर्थ तपस्या या ध्यान होता है, लेकिन वैदिक संदर्भ में इसका अर्थ “ऊष्मा (Heat) और ऊर्जा (Energy)” भी होता है।

  • आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह बिग बैंग के बाद की अत्यधिक उच्च ऊर्जा और तापमान की स्थिति को इंगित करता है।
  • ब्रह्मांड की उत्पत्ति भी अत्यधिक तापमान और ऊर्जा के संकुचन से हुई थी।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, बिग बैंग के पहले कुछ भी नहीं था, लेकिन फिर अत्यंत तीव्र ऊर्जा और तापमान से सृष्टि की रचना हुई। परंतु बिग बैंग अपने आप कैसे हो सकता है? बिना किसी कर्ता के कार्य संभव नहीं है I

📜 वैज्ञानिक सत्य:

  • बिग बैंग के प्रारंभ में तापमान 1.4 × 10¹⁰ Kelvin था।
  • यह स्थिति नासदीय सूक्त के “तपस” शब्द से मेल खाती है।

👉 तात्पर्य:

  • वेदों में तपस का अर्थ केवल तपस्या नहीं, बल्कि ऊर्जा, बल और शक्ति भी है।
  • इस श्लोक में यह कहा गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति एक अत्यधिक ऊर्जायुक्त प्रक्रिया थी। परमात्मा “ओम” नाम की ध्वनि से सृष्टि की उत्पत्ति प्रारंभ करते हैं I

“महिना” – महान बल (Immense Force or Power

  • यहाँ “महिना” शब्द किसी विशाल शक्ति या ऊर्जा के प्रभाव को इंगित करता है।
  • यह आधुनिक विज्ञान में Gravity और Nuclear Forces जैसी ब्रह्मांडीय शक्तियों से संबंधित हो सकता है।

👉 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • बिग बैंग के बाद गुरुत्वाकर्षण (Gravity), विद्युत-चुंबकीय बल (Electromagnetic Force) और अन्य परमाणु बल अस्तित्व में आए।
  • यह श्लोक बताता है कि सृष्टि की रचना में केवल ऊष्मा ही नहीं, बल्कि एक महान बल भी कार्य कर रहा था।

📜 शोध निष्कर्ष:

  • फिजिक्स में Inflation Theory कहती है कि ब्रह्मांड तेजी से विस्तारित हुआ, जो इस श्लोक के “महिना” शब्द से मेल खाता है।

“अजायत” – उत्पन्न हुआ (Came into Existence

  • यह शब्द इंगित करता है कि ऊर्जा के प्रभाव से एक “एकमात्र” तत्व उत्पन्न हुआ।
  • यह उस प्राथमिक अवस्था को इंगित करता है, जहाँ से ब्रह्मांड का विकास प्रारंभ हुआ।

👉 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • आधुनिक भौतिकी कहती है कि बिग बैंग के पहले क्वांटम ऊर्जा और गुरुत्वाकर्षण का एक विलक्षण बिंदु (Singularity) था, जो बाद में विस्तार करके ब्रह्मांड बना। परंतु वह परमात्मा की अस्तित्व को स्वीकार नहीं करती I
  • यहाँ “अजायत” शब्द यह स्पष्ट करता है कि ऊर्जा के तप से कुछ नया अस्तित्व में आया।

4️⃣ क्या सृष्टि के निर्माणकर्ता को स्वयं भी ज्ञान है?

📜 मंत्र:
“को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् कुत आयतः कुत इयं विसृष्टिः।”
(ऋग्वेद 10.129.6)

अर्थ: कौन निश्चित रूप से जानता है? कौन यहाँ यह स्पष्ट रूप से बता सकता है कि यह सृष्टि कहाँ से आई? यह किससे उत्पन्न हुई?

👉 यह श्लोक इस विचार को प्रस्तुत करता है कि सृष्टि की उत्पत्ति का वास्तविक कारण कोई भी पूर्णतः नहीं जान सकता,

यह मंत्र सृष्टि की उत्पत्ति के रहस्य को जानने की जिज्ञासा को व्यक्त करता है। यह बताता है कि सृष्टि कहाँ से आई, किसने बनाई, और क्या कोई वास्तव में इसे जान सकता है?

“को अद्धा वेद?” (कौन निश्चित रूप से जानता है?)

  • यहाँ यह प्रश्न उठाया गया है कि क्या कोई भी सृष्टि के वास्तविक स्रोत को जान सकता है?
  • इस श्लोक का स्वर अज्ञेयवाद (Agnosticism) के समान है, जहाँ यह माना जाता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति का पूर्ण सत्य शायद किसी को ज्ञात नहीं है।
  • यह आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा से भी मेल खाता है, जहाँ ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर विभिन्न सिद्धांत हैं, लेकिन कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं है।

👉 वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • बिग बैंग थ्योरी बताती है कि ब्रह्मांड अत्यधिक संकुचित अवस्था से विस्तारित हुआ, लेकिन यह नहीं बताती कि उससे पहले क्या था?
  • क्वांटम फिजिक्स के अनुसार, शून्य से भी कणों की उत्पत्ति संभव है, लेकिन यह प्रक्रिया अब भी शोध का विषय बनी हुई है।
  • Stephen Hawking ने भी यह स्वीकार किया था कि ब्रह्मांड की वास्तविक उत्पत्ति का रहस्य पूरी तरह अज्ञात है।

“क इह प्रवोचत्?” (कौन यहाँ यह स्पष्ट रूप से बता सकता है?)

  • यह प्रश्न किसी ज्ञानी या ईश्वर की ओर संकेत करता है कि क्या कोई ऐसा है जो इस रहस्य को पूरी तरह जानता हो?
  • यहाँ मानव बुद्धि की सीमाओं को इंगित किया गया है, कि शायद यह ज्ञान किसी को भी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो सकता।

👉 दार्शनिक दृष्टिकोण:

  • अद्वैत वेदांत में कहा गया है कि ब्रह्मांड की वास्तविकता को केवल ब्रह्म ही जान सकता है।
  • उपनिषदों में बताया गया है कि परम सत्य को केवल आत्मसाक्षात्कार द्वारा जाना जा सकता है, लेकिन इसकी पूर्ण व्याख्या संभव नहीं।

“कुत आयतः?” (यह कहाँ से आया?)

  • यह प्रश्न ब्रह्मांड की उत्पत्ति के स्रोत की खोज करता है।
  • क्या ब्रह्मांड स्वतः उत्पन्न हुआ या किसी शक्ति द्वारा निर्मित किया गया?

👉 विज्ञान में समानता:

  • विज्ञान में Singularity और Quantum Fluctuation जैसे सिद्धांत हैं, लेकिन इनमें भी कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है।
  • वैज्ञानिक समुदाय इस बात पर एकमत नहीं है कि ब्रह्मांड किसी कारण से बना या यह अनायास उत्पन्न हुआ।
  • परंतु वेदों में इसका सटीक वर्णन है कि परमात्मा के द्वारा सृष्टि की रचना होती है उपादान, निमित्त और साधारण कारण के बिना सृष्टि नहीं बन सकती I

“कुत इयं विसृष्टिः?” (यह किससे उत्पन्न हुई?)

  • यहाँ “विसृष्टिः” शब्द ब्रह्मांड की उत्पत्ति को दर्शाता है।
  • क्या इसे किसी ईश्वर ने बनाया या यह स्वयं अस्तित्व में आया?
  • यदि इसे किसी ने बनाया, तो उस स्रष्टा का स्वयं का स्रोत क्या है?

👉 वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण:

  • धार्मिक विचार:
    • वेदों में ब्रह्म को सृष्टि का मूल कारण बताया गया है।
    • वैदिक ग्रंथों में प्रकृति और पुरुष (शक्ति और चेतना) के संयोग से सृष्टि की रचना का सिद्धांत मिलता है।
  • वैज्ञानिक विचार:
    • विज्ञान में Multiverse Theory, String Theory, Quantum Fluctuations जैसी अवधारणाएँ हैं, लेकिन कोई ठोस उत्तर नहीं है।

नासदीय सूक्त और आधुनिक विज्ञान

नासदीय सूक्तआधुनिक विज्ञान
सृष्टि की उत्पत्ति से पहले कुछ भी नहीं था।बिग बैंग से पहले ब्रह्मांड अत्यधिक संकुचित अवस्था में था।
सृष्टि की उत्पत्ति ऊर्जा (तप) से हुई।बिग बैंग अत्यधिक ऊर्जा से उत्पन्न हुआ।
कोई निश्चित रूप से नहीं जानता कि सृष्टि कैसे बनी।विज्ञान भी सृष्टि की वास्तविक उत्पत्ति को पूरी तरह नहीं समझ पाया है।

👉 निष्कर्ष: वैदिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों में कई समानताएँ हैं परंतु मौलिक रूप से अनेक भिन्नताएं हैं I आधुनिक विज्ञान भौतिक दृष्टिकोण से सब कुछ समझने का प्रयास करता है I परमात्मा, जीवात्मा और प्रकृति के मूलतत्वों का उसके शोध में कोई स्थान नहीं I


नासदीय सूक्त का दार्शनिक और आध्यात्मिक महत्व

1️⃣ ज्ञान की अनंतता: यह सूक्त यह दर्शाता है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती।

2️⃣ संदेह और जिज्ञासा: यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है, क्योंकि यह प्रश्न पूछने को प्रेरित करता है।

3️⃣ अज्ञेयवाद (Agnosticism) का समर्थन: यह स्वीकार करता है कि सृष्टि का रहस्य शायद कभी पूरी तरह ज्ञात नहीं हो सकता।


निष्कर्ष

✔ नासदीय सूक्त केवल सृष्टि की उत्पत्ति की खोज नहीं करता, बल्कि यह इंगित करता है कि इस रहस्य को कोई पूर्ण रूप से नहीं जान सकता। सृष्टि की वास्तविकता को समझने के लिए केवल तर्क और विज्ञान पर्याप्त नहीं हो सकते।
✔ यह विज्ञान और आध्यात्मिकता दोनों को जिज्ञासा और शोध की प्रवृत्ति को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
✔ यह स्पष्ट करता है कि मानव बुद्धि की सीमाएँ हैं और ब्रह्मांड की उत्पत्ति का पूर्ण सत्य संभवतः हमेशा रहस्य ही बना रहेगा।

📜 अंतिम सार:
“ब्रह्मांड की उत्पत्ति का रहस्य आज भी विज्ञान और दर्शन के लिए अनसुलझी पहेली है, जिसे ऋग्वेद के इस श्लोक ने अरबों वर्ष पहले ही इंगित कर दिया था।”

“ब्रह्मांड की उत्पत्ति का रहस्य आज भी विज्ञान, दर्शन और आध्यात्मिकता के लिए अनसुलझी पहेली बना हुआ है। नासदीय सूक्त यह स्वीकार करता है कि शायद इसका अंतिम उत्तर किसी को भी पूरी तरह ज्ञात नहीं हो सकता।”

👉 इस प्रकार, नासदीय सूक्त केवल वेदों का एक आध्यात्मिक श्लोक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सोच और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण विचार है।

वैदिक सनातन धर्म शंका समाधान पुस्तक

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