“वेद” – एक ऐसा शब्द जो केवल ग्रंथों का नाम नहीं, बल्कि ब्रह्माण्ड के मूल नियमों, चेतना, ध्वनि और ऊर्जा के शाश्वत स्त्रोत का परिचायक है। यह केवल चार पुस्तकों तक सीमित नहीं, अपितु सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में रही एक दिव्य ध्वनि-श्रृंखला है। आज का यह ब्लॉग इसी विषय की गहराई में जाकर इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेगा – “मानव को वेदों का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ?”
वेदों को “अपौरुषेय” कहा गया है, अर्थात इनकी रचना किसी मानव ने नहीं की। वे न तो किसी व्यक्ति की कल्पना हैं, न ही किसी ऐतिहासिक घटना के वर्णन। ये सनातन, अनादि और अपरिवर्तनीय ज्ञान के स्त्रोत हैं, जो ब्रह्माण्ड की संरचना में सन्निहित हैं।
नहीं। वेदों का “लेखन” कभी नहीं हुआ। वे ऋषियों द्वारा अनुभूत और श्रुति के रूप में ग्रहण किए गए। वेदों को “श्रुति” कहा जाता है, जिसका अर्थ है – सुना गया। ये सुनी हुई ऋचाएं किसी मानसिक कल्पना का परिणाम नहीं, बल्कि सृष्टि में पहले से व्याप्त दिव्य ध्वनियाँ थीं, जिन्हें ऋषियों ने समाधि की अवस्था में अंतरिक्ष से ग्रहण किया।
जब ब्रह्माण्ड की रचना हुई, उसी समय वेद की ऋचाएँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में छन्दों के रूप में फैल गईं। इन छन्दों का अस्तित्व हर कण, हर तत्व, हर ऊर्जा, और हर गति में समाया हुआ था।
इन ऋचाओं की उपस्थिति को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है:
यहां वेद किसी ‘किताब’ की तरह अस्तित्व में नहीं आए, बल्कि एक नाद (ध्वनि) के रूप में संपूर्ण अंतरिक्ष में विद्यमान हो गए।
मानव की प्रथम पीढ़ी में चार ऐसी दिव्य आत्माएं उत्पन्न होती हैं जो पूर्णरूपेण पवित्र, समाधिस्थ और आत्मज्ञान में स्थित होती हैं। ये हैं:
ये चार ऋषि समाधि में लीन होकर ईश्वर की कृपा से उन ऋचाओं को ग्रहण करते हैं, जो अंतरिक्ष में नित्य विद्यमान रहती हैं। ये ऋचाएं किसी भाषा में नहीं होतीं, बल्कि उनकी दिव्यता और अर्थ को आत्मा के स्तर पर ग्रहण किया जाता है।
इन चार ऋषियों ने जो ऋचाएँ ग्रहण कीं, वही आगे चलकर चार वेदों के रूप में व्यवस्थित हुईं:
इन ऋचाओं में केवल शब्द नहीं, बल्कि नाद, छन्द, ऊर्जा, ज्ञान, विज्ञान, आयुर्वेद, राजनीति, आध्यात्म और ब्रह्मज्ञान का सम्पूर्ण समावेश होता है।
वेद मुख्यतः सात प्रकार के छन्दों में विभाजित हैं। ये छन्द ही वे हैं, जो ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की गति को निर्देशित करते हैं। उदाहरण के लिए:
इन छन्दों के माध्यम से ऋचाएँ केवल उच्चारण नहीं, बल्कि कम्पनात्मक शक्ति (Vibrational Power) होती हैं।
ऋषि इन ऋचाओं को उसी तरह छानकर ग्रहण करते हैं जैसे किसी सत्तू को चालनी से छाना जाता है। इसका अर्थ यह है कि:
इन चार ऋषियों ने अपने अनुभव और आत्मसात किए हुए मन्त्रों को आगे महर्षि ब्रह्मा को प्रदान किया। ब्रह्मा, जो सृष्टि के प्रथम ज्ञानी पुरुष माने जाते हैं, उन्होंने इस ज्ञान को:
यहीं से ज्ञान का प्रवाह गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से आगे बढ़ता गया।
वेद कोई बीती हुई स्मृति नहीं, बल्कि एक नित्य वर्तमान ऊर्जा है, जिसे आज भी शुद्ध साधना, तप, और समाधि द्वारा अनुभव किया जा सकता है। यही वेदों की महत्ता और सनातनता है।