आज का युग वह समय है जब सनातन धर्म पर आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के संकट मंडरा रहे हैं। भारत जहां कभी धर्म, संस्कृति और साधना का गढ़ था, आज धर्म के वास्तविक स्वरूप को विस्मृत किया जा रहा है। इस संकट से उबरने का एकमात्र मार्ग है – मंदिरों की जगह गुरुकुलों की स्थापना।
आप यदि इतिहास के पन्नों को उलटें तो पाएँगे कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, ईरान जैसे कई देशों में कभी मंदिर थे। वहाँ की धरती पर वैदिक मंत्र गूंजते थे। पर आज वहाँ न मंदिर हैं, न सनातनी संस्कृति। क्यों?
उत्तर स्पष्ट है – वहाँ गुरुकुल नहीं बचे।
जहाँ तक गुरुकुल रहे, वहाँ धर्म जीवित रहा। पर जैसे ही वेदों का अध्ययन बंद हुआ, गीता को जीवन से काट दिया गया, शस्त्र और शास्त्र का संतुलन टूटा, वहाँ धर्म केवल इमारतों में सिमट गया – और अंततः मिट गया।
भारत आज भी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, परंतु धार्मिक दृष्टि से कमजोर होता जा रहा है। इसके प्रमुख कारण हैं:
यही कारण है कि जब आक्रमण हो, या कोई संकट आए, तो सनातनी डर जाते हैं, संघर्ष नहीं करते।
गुरुकुल वह स्थान है जहाँ केवल शिष्य नहीं, “मनुष्य” बनते हैं। वहाँ बालक:
गुरुकुल कोई “पुरानी प्रणाली” नहीं है – यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी महाभारत के समय थी।
मंदिर की आवश्यकता है, परंतु केवल मंदिर से समाज नहीं बचेगा। मंदिर हमारी आस्था का केंद्र हैं, परंतु यदि मंदिरों में धर्मशिक्षा नहीं हो, बालकों को ज्ञान न मिले, तो वे केवल “ईश्वर से माँगने” के केंद्र रह जाएँगे – “मंदिर ईश्वर के अनुसार जीने” का स्थान नहीं।
यह तभी संभव है जब गुरुकुल हों।
मंदिर के पास या अलग, एक छोटा गुरुकुल – जहाँ बच्चे वेद, संस्कृत, गीता, योग, शस्त्र, इतिहास, धर्मशिक्षा सीखें।
ग्राम स्तर पर विद्वान ब्राह्मणों, गुरुओं को सहयोग दें कि वे गुरुकुल चलाएँ।
गुरुकुलों में वैदिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान, गणित, तकनीक सिखाना।
गुरुकुल में उपयोग हेतु वैदिक पाठ्यक्रम विकसित करें। उन्हें बच्चों के लिए रोचक और प्रासंगिक बनाएं।
यह कार्य केवल सरकार नहीं कर सकती। यह सनातनियों की जिम्मेदारी है। जो लोग मंदिर निर्माण में दान देते हैं, वे एक बार सोचें – अगर 10 मंदिरों की बजाय 2 मंदिर और 8 गुरुकुल बनाए जाते, तो क्या परिणाम नहीं बदलते?
एक सनातनी बालक जब वेदों, गीता और आत्मरक्षा की शिक्षा प्राप्त करता है, तो वह केवल धार्मिक नहीं, राष्ट्रवादी, योद्धा और सच्चा नागरिक बनता है। यही वह दृष्टि है जो भारत को फिर से “विश्वगुरु” बनाएगी।
हमारे पास दो मार्ग हैं:
आज हमें तय करना होगा – क्या हम केवल “पूजा” करना चाहते हैं या “संरक्षण” भी?
हम मंदिर नहीं, गुरुकुल चाहते हैं।
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✅अपने गाँव, कस्बे या मोहल्ले में एक छोटा गुरुकुल स्थापना का प्रयास अति आवश्यक रूप से अभी से प्रारंभ करें।
✅अपने बच्चों को रामायण, महाभारत, गीता और वेदों की शिक्षा दें।
✅मंदिर से पहले गुरुकुल को स्थान दें – यही सनातन की रक्षा का एकमात्र मार्ग है।
🙏 जय श्रीराम | जय सनातन | जय गुरुकुल परंपरा 🙏
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