जब हम “विज्ञान” शब्द सुनते हैं, तो हमारे मन में आधुनिक लैब्स, रोबोट्स, स्पेस टेक्नोलॉजी, और इलेक्ट्रॉनिक्स का चित्र उभरता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि विज्ञान की यह धारा वेदों से ही निकलकर विश्व में फैली है। वेदों में विज्ञान केवल आध्यात्मिक रहस्य नहीं हैं, बल्कि यह सृष्टि की रचना, गणितीय सूत्रों, खगोलशास्त्र, यंत्र विज्ञान और यहां तक कि अंतरिक्ष यात्रा जैसे आधुनिक विषयों का आधार प्रस्तुत करते हैं।
यह लेख प्राचीन वैदिक ग्रंथों से लिए गए प्रमाणों के माध्यम से यह सिद्ध करेगा कि कैसे ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले वह ज्ञान दिया, जिसे आज हम आधुनिक खोज मानते हैं।
वेदों में ज्ञान को दो भागों में बांटा गया है:
ऋषियों ने दोनों विद्याओं को समान रूप से महत्व दिया। वेदों की भाषा सांकेतिक, संक्षिप्त और बीज रूप में है। यही कारण है कि आधुनिक शोधकर्ता उसके अर्थों को धीरे-धीरे समझ पा रहे हैं।
यजुर्वेद (3/6) में पृथ्वी के परिधि में घूमने की बात कही गई है:
“पृथ्वी अपने परिमंडल में आकाश के मध्य सदैव गति कर रही है। सूर्य उसके पिता के समान है और चंद्रमा उसकी माता के समान।”
ऋग्वेद 10/65/6 में यह स्पष्ट किया गया है कि सभी ग्रह-नक्षत्र अपने-अपने निश्चित पथ में घूमते हैं। यह वही सिद्धांत है जिसे आधुनिक एस्ट्रोनॉमी आज मानती है।
यजुर्वेद 23/9 में एक प्रश्नोत्तरी के माध्यम से बताया गया है कि:
यह वही बात है जो आज का विज्ञान भी मानता है।
ऋग्वेद 6/16/13 में विद्युत शक्ति के प्रयोग का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि:
“जैसे विद्वान जन सूर्य के पास से विद्युत को ग्रहण कर कार्य सिद्ध करते हैं।”
अगस्त्य संहिता में एक प्रकार की बैटरी या इलेक्ट्रिक सेल बनाने की विधि बताई गई है:
यह विधि पूरी तरह से आज के “डैनियल सेल” की तरह कार्य करती है।
ऋग्वेद 1/34/2, 1/164/48, 6/66/7 जैसे कई मंत्रों में ऐसे विमानों की बात की गई है जो:
अगस्त्य संहिता, ब्रह्माण्ड पुराण और वायुपुराण जैसे ग्रंथों में भी यंत्र, विमान, और ऊर्जा स्रोतों की विधियां बताई गई हैं।
ऋग्वेद 6/66/7 के अनुसार:
“वह विमान न तो लकड़ी, न कोयले, न तेल और न ही घोड़ों से चलता है – वह केवल ऊर्जा से चलता है।”
यह free energy propulsion system की अवधारणा को दर्शाता है।
यजुर्वेद 18/24 और 18/25 में संख्याओं की गणना, जोड़, गुणा, भाग, वर्गमूल, घनमूल आदि की विधियों का उल्लेख है। इसमें दो अंकों से लेकर 101 तक की संख्याएं वैदिक छंदों में दी गई हैं।
सिद्धांत शिरोमणि (गोलाध्याय) में लिखा है:
“आकर्षयति यत् तेषां पतनं यद्भवत्यतः।”
अर्थ: पृथ्वी अपनी गुरुत्व शक्ति से पदार्थों को आकर्षित करती है। जब किसी वस्तु को ऊपर फेंका जाता है तो वह गुरुत्व शक्ति के कारण वापस पृथ्वी पर गिरती है।
यह न्यूटन के सिद्धांत से हजारों वर्ष पहले बताया गया था।
अगस्त्य संहिता में स्पष्ट रूप से कहा गया है:
“जल को जब विशिष्ट प्रक्रिया से विभाजित किया जाता है तो वह प्राण वायु (Oxygen) और उदान वायु (Hydrogen) में बदल जाता है।”
यह ‘Electrolysis of Water’ की संकल्पना का स्पष्ट वर्णन है।
वेदों को केवल धार्मिक ग्रंथ समझना उनकी व्यापकता को सीमित करना है। वेदों में निहित ज्ञान में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, पदार्थों की गति, ऊर्जा के स्रोत, गणितीय सूत्र, विमान निर्माण, पृथ्वी की गोलाई, खगोलशास्त्र – ये सभी आधुनिक विज्ञान के स्तंभ हैं।
Q1: क्या वेद केवल धार्मिक पुस्तकें हैं?
नहीं, वेदों में खगोल, गणित, रसायन, वायुयान और विद्युत जैसी अनेक वैज्ञानिक अवधारणाएँ हैं।
Q2: क्या वेदों में विमान का उल्लेख है?
हाँ, ऋग्वेद और भरद्वाज मुनि के विमान शास्त्र में विभिन्न प्रकार के वायुयानों का वर्णन है।
Q3: गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत वेदों में कब आया?
भास्कराचार्य ने 12वीं सदी में, और वेदों में इससे भी पहले गुरुत्वाकर्षण का स्पष्ट उल्लेख है।
Q4: क्या आधुनिक विज्ञान ने वेदों से प्रेरणा ली है?
कई सिद्धांत, जैसे पृथ्वी का घूमना, चंद्रमा का परावर्तित प्रकाश, ग्रहों की गति, वेदों में पहले से बताए गए थे।