भारतीय संस्कृति का मूल तत्व संस्कार हैं। संस्कार जीवन के वे सोपान हैं जो जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के हर चरण को शुद्ध, संतुलित और अर्थपूर्ण बनाते हैं।
भारतीय संस्कृति का मूल तत्व संस्कार हैं। संस्कार जीवन के वे सोपान हैं जो जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के हर चरण को शुद्ध, संतुलित और अर्थपूर्ण बनाते हैं।
भारतीय समाज में “शूद्र” शब्द को लेकर सबसे अधिक भ्रांतियाँ फैली हुई हैं। आम जनमानस में यह धारणा बना दी गई है कि शूद्र का अर्थ “नीच जाति” या “दास”
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में “देवता” शब्द का अत्यंत गहरा और वैज्ञानिक महत्व है। प्रायः लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि “क्या वास्तव में सनातन धर्म
मानव जीवन कर्मप्रधान है। प्रत्येक क्षण हम कर्म करते हैं—चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो या वाचिक। वेद, उपनिषद, गीता, मनुस्मृति और समस्त धर्मशास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि
वर्तमान हिन्दू समाज की सबसे लोकप्रिय धारणा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव को सृष्टि के तीन अलग-अलग देवता माना जाता है — ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता, विष्णु को पालनकर्ता और शिव
जब हम “विज्ञान” शब्द सुनते हैं, तो हमारे मन में आधुनिक लैब्स, रोबोट्स, स्पेस टेक्नोलॉजी, और इलेक्ट्रॉनिक्स का चित्र उभरता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि विज्ञान की
भारत में शिक्षा सदियों से “जीवन जीने की कला” और “समाज के कल्याण” के लिए होती थी। गुरुकुलों में पढ़ाई केवल अक्षरज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि जीवन कौशल, नैतिकता,
आयुर्वेद के अनुसार सम्पूर्ण स्वास्थ्य का आधार त्रिदोष – वात, पित्त, और कफ – के संतुलन में निहित है। चरक संहिता (सूत्रस्थान 1/57) में कहा गया है: “वायु: पित्तं कफश्चैव
संसार की सबसे रहस्यमयी अवधारणाओं में से एक है – माया। यह शब्द हर धार्मिक, दार्शनिक और आत्मबोध के मार्ग में सामने आता है। माया का अर्थ क्या है?क्या यह
यदि ईश्वर करुणामय है तो सृष्टि में इतना दुःख क्यों है? यह प्रश्न केवल आधुनिक चिंतन नहीं, अपितु ऋषियों, मुनियों, तत्त्वचिंतकों, और महान दार्शनिकों के मन में भी उत्पन्न हुआ







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Kautilya Nalinbhai Chhaya: ગુરુકુળ થી ભારત નિર્માણ શક્ય છે
Kautilya Nalinbhai Chhaya: We Will Implement this in Our Life
Kautilya Nalinbhai Chhaya: I Choose Niskam Karma Not Sanyas