भारत में शिक्षा सदियों से “जीवन जीने की कला” और “समाज के कल्याण” के लिए होती थी। गुरुकुलों में पढ़ाई केवल अक्षरज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि जीवन कौशल, नैतिकता,
भारत में शिक्षा सदियों से “जीवन जीने की कला” और “समाज के कल्याण” के लिए होती थी। गुरुकुलों में पढ़ाई केवल अक्षरज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि जीवन कौशल, नैतिकता,
आज के समाज में जातिवाद एक ऐसी सामाजिक कुरीति बन चुका है, जिसने एकता और वैदिक मूल्यों को गहरा आघात पहुँचाया है। विशेषतः “ब्राह्मण” शब्द को लेकर फैली भ्रांतियाँ समाज
आजकल संप्रदायों और विभिन्न मतमतांतरों ने धर्म शब्द का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप धर्म के नाम पर अनेक झगड़े हो रहे हैं। यह प्रश्न उठता है
वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती का उल्लेख बार-बार आता है, लेकिन इसे एक भौगोलिक नदी तक सीमित कर देना वेदों की व्यापकता और उनके यौगिक अर्थों को सीमित करने जैसा
वर्तमान युग में जब धर्म पर तरह-तरह के प्रश्न उठते हैं, तो एक गंभीर और बुनियादी प्रश्न यह भी होता है — “शास्त्र प्रमाण का क्या अर्थ है?” और “क्यों
यदि ईश्वर करुणामय है तो सृष्टि में इतना दुःख क्यों है? यह प्रश्न केवल आधुनिक चिंतन नहीं, अपितु ऋषियों, मुनियों, तत्त्वचिंतकों, और महान दार्शनिकों के मन में भी उत्पन्न हुआ
वर्तमान भारतीय समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है। यह विडंबना ही है कि जिसने संसार को वेद, उपनिषद, शास्त्र और ज्ञान दिए उसी समाज ने वर्ण व्यवस्था को जाति
वेद मानवता के प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जिनमें न केवल आध्यात्मिक ज्ञान है, अपितु एक संतुलित समाज निर्माण की संपूर्ण रूपरेखा भी है। वेदों में वर्णित समाज व्यवस्था मात्र एक वर्गीकरण
भारतीय समाज में “शूद्र” शब्द को लेकर सबसे अधिक भ्रांतियाँ फैली हुई हैं। आम जनमानस में यह धारणा बना दी गई है कि शूद्र का अर्थ “नीच जाति” या “दास”
भारतवर्ष की पहचान सदैव उसके ज्ञान और संस्कृति से रही है। इस पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने में गुरु-शिष्य परंपरा का सबसे बड़ा योगदान है। सनातन धर्म में ज्ञान केवल







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