सनातन धर्म का आधार कर्म सिद्धांत है। यह ब्रह्मांडीय सत्य है कि हर क्रिया का परिणाम होता है। वैदिक ग्रंथों और भगवद गीता में कर्म, विकर्म, अकर्म, और निष्काम कर्म
सनातन धर्म का आधार कर्म सिद्धांत है। यह ब्रह्मांडीय सत्य है कि हर क्रिया का परिणाम होता है। वैदिक ग्रंथों और भगवद गीता में कर्म, विकर्म, अकर्म, और निष्काम कर्म
आज का युग भौतिक प्रगति और तकनीकी विकास की नई ऊँचाइयों को छू रहा है, लेकिन इसके साथ नैतिक मूल्यों का पतन भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
शिक्षा मनुष्य के विकास का आधार है। यह केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के चारित्रिक, नैतिक, और आध्यात्मिक उत्थान में सहायक होती है। शिक्षा केवल
योग, एक प्राचीन भारतीय परंपरा है जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए अद्वितीय प्रणाली प्रदान करती है। योग का मूल उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और मन की चंचलता को समाप्त
आयुर्वेद (Ayurveda) भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है, जिसे “जीवन का विज्ञान” कहा जाता है। यह केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं है, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है, जो मनुष्य के
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – सनातन जीवन दर्शन का आधार सनातन धर्म में जीवन को केवल एक सांसारिक यात्रा नहीं, बल्कि एक उद्देश्यपूर्ण और दिव्य प्रक्रिया माना गया है।
मनुष्य के जीवन में संघर्ष और विरोधाभास सदैव विद्यमान रहते हैं। चाहे वह राजनीति हो, व्यापार हो, या पारिवारिक जीवन, विवादों का समाधान करने के लिए विभिन्न नीतियों का प्रयोग
सनातन धर्म और आयुर्वेद में “पंचमहाभूत” का विशेष महत्व है। पंचमहाभूत—आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी—सृष्टि के निर्माण के मूल तत्त्व हैं। इन तत्त्वों से न केवल यह ब्रह्मांड बना
भारत में शिक्षा सदियों से “जीवन जीने की कला” और “समाज के कल्याण” के लिए होती थी। गुरुकुलों में पढ़ाई केवल अक्षरज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि जीवन कौशल, नैतिकता,
आज के समाज में जातिवाद एक ऐसी सामाजिक कुरीति बन चुका है, जिसने एकता और वैदिक मूल्यों को गहरा आघात पहुँचाया है। विशेषतः “ब्राह्मण” शब्द को लेकर फैली भ्रांतियाँ समाज
dr gajanan shankr narkar: thanks aacharya ji for sharing the eternal knowledge..
Manoj kumar jangir: बहुत सुन्दर
Durga Charan Gagrai: इस संसार में पुरुषार्थ मनुष्य जीवन है
Amar Nath Sharma: Very nice