ग्रहण (Eclipse) शब्द सुनते ही रहस्य, उत्सुकता और अनेक मान्यताएँ हमारे मन में उमड़ने लगती हैं। भारतीय परंपरा में ग्रहण को केवल खगोलीय घटना ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण माना गया। लेकिन यदि हम वैदिक खगोल-विज्ञान (Vedic Astronomy) और आधुनिक Science (Modern Astronomy & Physics) के आधार पर देखें, तो हमें एक बहुत स्पष्ट चित्र मिलता है:
वैदिक ऋषियों और प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने ग्रहण को ज्यामितीय छाया-घटना के रूप में समझा।
आधुनिक विज्ञान भी यही बताता है कि ग्रहण पृथ्वी–सूर्य–चंद्रमा की स्थिति और गति के कारण उत्पन्न होता है।
साथ ही, ग्रहण का पर्यावरण, मौसम, वन्यजीव और मनुष्य की धारणा पर वास्तविक प्रभाव पड़ता है, लेकिन वह प्राकृतिक कारणों से, न कि किसी अदृश्य रहस्यमय शक्ति से।
Table of Contents
1. वैदिक साहित्य में ग्रहण का उल्लेख
(क) वेदांग ज्योतिष (Vedanga Jyotisha)
वेदांग ज्योतिष भारतीय खगोल-विज्ञान का सबसे पुराना ग्रंथ है। इसमें ग्रहणों का उल्लेख प्रत्यक्ष रूप से नहीं है, लेकिन यह सूर्य-चंद्रमा की गति, तिथियों और नक्षत्रों के आधार पर समय-निर्धारण का सूत्र देता है। यह वैदिक खगोलशास्त्र की नींव है।
(ख) ऋग्वेद और अथर्ववेद
ऋग्वेद (5.40.5) में उल्लेख है कि “सूर्य अचानक अंधकार से ढँक जाता है”—यह सूर्य ग्रहण का स्पष्ट वर्णन है।
अथर्ववेद (19.9.10) में चंद्रमा और सूर्य पर छाया पड़ने का उल्लेख है, जो चंद्र और सूर्य ग्रहण की ओर संकेत करता है।
(ग) ब्राह्मण ग्रंथ और स्मृतियाँ
शतपथ ब्राह्मण और याज्ञवल्क्य स्मृति में ग्रहण का उल्लेख खगोलीय घटना के रूप में है।
यहाँ इसे “छाया से सूर्य/चंद्र के ढक जाने” की प्रक्रिया बताया गया है।
2. आर्यभट और ग्रहण का वैज्ञानिक विश्लेषण
आचार्य आर्यभट (499 CE) ने “आर्यभटीय” नामक ग्रंथ में पहली बार स्पष्ट रूप से कहा:
चंद्र ग्रहण पृथ्वी की छाया से होता है।
सूर्य ग्रहण चंद्रमा के कारण होता है, जो सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है।
चंद्रमा स्वयं प्रकाशमान नहीं है; वह सूर्य का प्रकाश परावर्तित करता है।
👉 यह दृष्टिकोण उस समय की पौराणिक मान्यताओं से बिल्कुल अलग और शुद्ध वैज्ञानिक था।
3. सूर्य-सिद्धांत और ग्रहण गणना
सूर्य-सिद्धांत (लगभग 4th–9th शताब्दी CE) भारतीय खगोल विज्ञान का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें:
ग्रहों और चंद्रमा की गति की गणना।
चंद्रमा की कक्षा और सूर्य-पथ (क्रांतिवृत्त) का वर्णन।
लूनर नोड्स (Rahu & Ketu) को परिभाषित किया गया—जहाँ चंद्रमा की कक्षा सूर्य-पथ को काटती है।
ग्रहणों की गणना त्रिकोणमिति और ज्यामिति के आधार पर संभव बताई गई।
👉 यहाँ “राहु-केतु” ग्रह नहीं हैं, बल्कि केवल गणितीय बिंदु हैं, जहाँ ग्रहण संभव होता है।
4. विज्ञान की दृष्टि से ग्रहण
(क) सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse)
जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है।
केवल अमावस्या पर संभव।
प्रकार: आंशिक, पूर्ण, और वलयाकार।
(ख) चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse)
जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है।
केवल पूर्णिमा पर संभव।
प्रकार: आंशिक, पूर्ण, उपच्छाया ग्रहण।
(ग) ग्रहण का पूर्वानुमान
Eclipse Season: हर ~173 दिन पर।
Saros Cycle: ~18 वर्ष 11 दिन पर समान प्रकार का ग्रहण दोहराता है।
5. क्या ग्रहण जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करता है?
(क) पर्यावरणीय प्रभाव
अध्ययनों में पाया गया:
तापमान अचानक 0.5–1°C गिर सकता है।
हवा की गति लगभग 9% तक कम हो सकती है।
सूर्य के विकिरण (Solar Irradiance) में तेज़ गिरावट आती है।
(ख) वायुमंडल और आयनमंडल पर प्रभाव
आयनमंडल की इलेक्ट्रॉन घनता घट जाती है।
रेडियो तरंगों और सैटेलाइट सिग्नल पर असर पड़ता है।
(ग) वन्यजीव और पक्षियों का व्यवहार
अचानक अंधेरा होने पर पक्षी रात जैसा व्यवहार करने लगते हैं।
कीट-पतंगे, चमगादड़, जानवर अपने बायोलॉजिकल क्लॉक के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं।
(घ) मानव जीवन पर प्रभाव
स्वास्थ्य पर कोई प्रत्यक्ष हानिकारक प्रभाव सिद्ध नहीं है।
सूर्य ग्रहण के दौरान आँखों को बिना सुरक्षा सीधे देखने से स्थायी नुकसान हो सकता है।
मनोवैज्ञानिक स्तर पर भय या आशंका का प्रभाव हो सकता है, क्योंकि सामूहिक चेतना प्रभावित होती है।
6. मान्यताएँ और अंध-श्रद्धा बनाम विज्ञान
मान्यता (Myth)
विज्ञान (Science)
गर्भवती महिलाओं को ग्रहण में बाहर नहीं जाना चाहिए
कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं। केवल सूर्य ग्रहण को देखने से आँखों को बचाना आवश्यक है।
ग्रहण के समय भोजन खराब हो जाता है
वैज्ञानिक आधार नहीं। भोजन तभी खराब होगा यदि उसे लंबे समय तक बाहर रखा जाए।
चंद्र ग्रहण देखने से नुकसान होता है
पूरी तरह गलत। चंद्र ग्रहण सुरक्षित है।
ग्रहण के समय दान-पुण्य का विशेष फल
यह धार्मिक-सांस्कृतिक मान्यता है, वैज्ञानिक दृष्टि से कोई प्रमाण नहीं।
7. ग्रहण और सुरक्षा उपाय
सूर्य ग्रहण को ISO-प्रमाणित चश्मे या पिनहोल प्रोजेक्शन से ही देखें।
दूरबीन/कैमरा से सीधे सूर्य को न देखें।
चंद्र ग्रहण देखने के लिए कोई सुरक्षा आवश्यकता नहीं।
8. सार-निष्कर्ष
वैदिक खगोल-विज्ञान ने बहुत पहले ही ग्रहण को ज्यामितीय छाया-घटना के रूप में परिभाषित कर दिया था।
आर्यभट और सूर्य-सिद्धांत ने गणितीय सूत्रों से ग्रहण का सही कारण बताया।
आधुनिक Science भी यही कहता है—ग्रहण पूरी तरह पूर्वानुमेय और खगोलीय ज्यामिति पर आधारित घटना है।
प्रभाव: पर्यावरण (तापमान, हवा, प्रकाश) और वन्यजीवों पर अस्थायी प्रभाव पड़ता है।
मानव जीवन पर प्रत्यक्ष जैविक प्रभाव नहीं है, केवल सूर्य-दर्शन की सुरक्षा आवश्यक है।
अंध-श्रद्धाएँ सांस्कृतिक हैं, वैज्ञानिक नहीं।
👉 इस प्रकार, ग्रहण को हमें विज्ञान की दृष्टि से अद्भुत प्राकृतिक घटना मानना चाहिए, न कि भय या अंधविश्वास का कारण।
FAQs
Q1. वैदिक दृष्टि से राहु-केतु क्या हैं? ➡ वे चंद्रमा की कक्षा के वे बिंदु हैं जहाँ ग्रहण होता है, वास्तविक ग्रह नहीं।
Q2. क्या ग्रहण से गर्भवती महिला पर असर पड़ता है? ➡ नहीं, कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं।
Q3. क्या चंद्र ग्रहण देखने में खतरा है? ➡ नहीं, चंद्र ग्रहण नंगी आँख से सुरक्षित है।
Q4. क्या ग्रहण का पूर्वानुमान संभव है? ➡ हाँ, Saros cycle और खगोलीय गणना से।
Q5. क्या ग्रहण मानव स्वास्थ्य पर असर डालता है? ➡ प्रत्यक्ष हानि नहीं, लेकिन सूर्य ग्रहण को देखने में आँख-सुरक्षा जरूरी है।