आयुर्वेद का दृष्टिकोण: जीवन जीने की संहिता

आयुर्वेद मात्र रोगों की चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है। यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलन में रखते हुए दीर्घायु, आरोग्य और आनंददायक जीवन प्रदान करने वाली वैज्ञानिक प्रणाली है।

चरक संहिता में कहा गया है:

“स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं च”
— (चरक संहिता, सूत्रस्थान 30.26)

अर्थात् – स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के विकारों का निवारण करना आयुर्वेद का प्रमुख उद्देश्य है।


दिनचर्या (Daily Routine) – शरीर और प्रकृति के सामंजस्य का रहस्य

अष्टांग हृदयम् के ‘दिनचर्या अध्याय’ में जीवन के दैनिक क्रियाकलापों का विस्तार से वर्णन किया गया है, ताकि प्रकृति के चक्र के अनुरूप जीवन व्यतीत किया जा सके।

1. ब्राह्म मुहूर्त जागरण (सुबह 4–5 बजे)

  • ब्रह्ममुहूर्त में उठना आयुर्वेद में श्रेष्ठ माना गया है।
  • यह समय सत्त्वगुण की वृद्धि, ध्यान, अध्ययन और मानसिक स्पष्टता, चिंतन-मनन के लिए उपयुक्त है।

“ब्राह्मे मुहूर्त उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुषः”
— अष्टांग हृदयम्, सूत्रस्थान

2. मल-मूत्र त्याग

  • उठते ही शरीर के दोषों का निष्कासन आवश्यक है।
  • नियमित समय पर मल-मूत्र त्याग करने से वात-पित्त-कफ संतुलित रहते हैं।

3. दंत धावन और जीभ की सफाई

  • नीम, बबूल, अर्जुन आदि की दातुन से दांत साफ करें। मार्केट में उपलब्ध केमिकल टूथपेस्ट का उपयोग न करें ।
  • जीभ पर जमी कफ को टंग-क्लीनर से निकालना आवश्यक है।

4. अंजन और नस्य

  • आँखों में त्रिफला अंजन करना नेत्र रक्षा के लिए उत्तम है।
  • नस्य (नाक में औषधीय घृत या तेल) डालने से सिर, गर्दन, गला व आँखें स्वस्थ रहती हैं।

5. तेलमर्दन (Abhyanga)

  • तिल तेल से सिर, कान, पैरों में तेल मालिश करनी चाहिए।
  • इससे त्वचा, नसें, और हड्डियाँ मजबूत होती हैं।

“अभ्यङ्गं आचरेन्नित्यं” — चरक संहिता

6. व्यायाम (Exercise)

  • क्षमता अनुसार व्यायाम करें (स्वेद/पसीना आने तक)।
  • यह अग्नि (पाचन शक्ति) को तीव्र करता है, शरीर को हल्का और बलशाली बनाता है।

“लघुत्वं कर्मसामर्थ्यं स्थैर्यं कांति विवर्धनम्…” — चरक संहिता

7. स्नान (Bathing)

  • शुद्ध जल से स्नान करने से थकावट दूर होती है और शरीर में स्फूर्ति आती है। आयुर्वेदिक उबटन का ही उपयोग करें केमिकल युक्त साबुन का उपयोग न करें ।
  • गर्म जल से स्नान केवल कमर के नीचे करें; सिर पर ठंडा जल उचित है।
  • स्नान: पैर → घुटने → हाथ → छाती → सिर (ऊपर की ओर क्रम)।

8. वस्त्र, गंध, आभूषण, तिलक

  • स्वच्छ वस्त्र, सुगंधित उबटन, चंदन आदि से शरीर को सजाना चाहिए।
  • मन और आत्मा दोनों को प्रसन्न रखने के लिए यह आवश्यक है।

आयुर्वेदिक आहार-विचार (Dietary Principles)

आहार को आयुर्वेद में ‘महाभैषज्य’ यानी सबसे बड़ा औषधि माना गया है।
चरक संहिता में स्पष्ट कहा गया है:

“हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक्” —
अर्थात् जो आहार हितकारी हो, मित मात्रा में हो, और ऋतु के अनुसार हो, वही उचित है।

1. त्रिदोष संतुलन अनुसार भोजन

  • वात, पित्त और कफ – इन तीनों दोषों के अनुसार आहार का चयन करें।
  • जैसे – वात व्यक्ति को उष्ण, स्निग्ध आहार; पित्त को शीतल, मधुर; कफ को तीखा, उष्ण आहार चाहिए।

2. षड रसों का समावेश (Six Tastes)

  • मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा), कषाय (कसैला)।
  • इन छह रसों का संतुलित प्रयोग स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है।

3. अन्न के प्रकार

  • धान्य (अनाज): चावल, जौ, गेहूं आदि — जो पचने में हल्के और ऋतु अनुसार हों।
  • शाक (सब्जियां): ताजे, मौसमी और सुपाच्य।
  • मधुर फल: आम, पका केला, नारियल आदि पित्त शांत करते हैं।
  • मांसाहार, फास्ट एवं पैक्ड फूड आदि का सेवन न करें ।

4. अनुपान (After-drink)

  • घी, दूध, छाछ, शहद, जल आदि – आहार के अनुसार ही इनका चयन करें।

5. आहार संबंधी नियम

  • भोजन शांत मन से, बिना बातचीत के सुखासन में बैठ कर ही करें। टेबल और कुर्सी का उपयोग न करें I
  • गरम, ताजा, और सात्म्य आहार लें।
  • अति भोजन, रात्रि भोज, बार-बार स्नैक्स आदि निषेध हैं।

“नात्यश्नतः तु योग्यं भोजनं सुखं जीविताय च” — सुश्रुत संहिता

आहार’ को ‘महाभैषज्य’ कहा गया है

“हितं मितं यद् आहारं रसेन्द्रियप्रसादनम्।”
स्वस्थ शरीर के लिए हितकारी, मितभोजन और पचने योग्य भोजन आवश्यक है।

भोजन के नियम

नियमविवरण
मिताहारभूख से थोड़ा कम खाना
गरम एवं ताजापकाया हुआ, ताजा और गरम भोजन सबसे उत्तम
तीनों दोषों के अनुसारवात, पित्त, कफ को संतुलित करने वाला
मौन रहकर भोजनएकाग्र चित्त से भोजन करना

रहन-सहन (Lifestyle Practices)

1. निद्रा (Sleep)

  • रात को समय पर सोना (लगभग 9–10 बजे) और ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4-5 बजे उठना श्रेष्ठ माना गया है।
  • दिन में सोना वर्जित है (कफ वृद्धि करता है), किंतु वृद्ध, बालक, रोगी, व ग्रीष्म ऋतु में अपवाद है।

2. ऋतुचर्या (Seasonal Routine)

सुश्रुत संहिता में ऋतुओं के अनुसार वस्त्र और विहार का वर्णन है।

  • गर्मियों में हल्के वस्त्र
  • सर्दियों में गाढ़े और ऊनी वस्त्र
  • वायुप्रदूषण, धूल, शोर से दूर रहना चाहिए

आयुर्वेद हर ऋतु में जीवनशैली बदलने की सुझाव देता है:

ऋतुप्रमुख दोषआहार-चर्या
ग्रीष्मपित्तठंडे पेय, जलविष्य फल
वर्षावातउष्ण, स्निग्ध आहार, पंचकर्म
शरदपित्ततिक्त रस, चंद्रमृत स्नान
हेमंतकफघृतयुक्त, भारी भोजन
शिशिरवात-कफव्यायाम, तिल तेल अभ्यंग
वसंतकफशहद, त्रिकटु, व्यायाम

आचार-विचार और मन की शुद्धता (Conduct and Mental Purity)

चरक संहिता और अष्टांग हृदयम् में मानसिक, सामाजिक और धार्मिक आचार पर बल दिया गया है।

“सत्त्वं मनो मलं च” — चरक संहिता

1. सत्संग और सत्य

  • सत्य भाषण, ईश्वर भक्ति, गुरु सेवा, ब्रह्मचर्य का पालन आदि मानसिक शांति के लिए आवश्यक हैं।
  • बुरे विचार, कटु वचन, असत्य, छल कपट आदि मानसिक विकारों के कारण बनते हैं।

2. दान और सेवा

  • नियमित दान, सेवा, अतिथि सत्कार आदि से पुण्य की वृद्धि होती है।

3. ध्यान और प्रार्थना

  • नित्य योग, ध्यान, मंत्र जाप, और यज्ञ कर्म से मन और आत्मा शुद्ध होते हैं।

4. सद्वृत्त (Good Conduct)

चरक संहिता के अनुसार रोगों का मुख्य कारण मानसिक दोष हैं — राग, द्वेष, क्रोध, मोह आदि। इनसे बचाव के लिए सदाचार अनिवार्य है।

सद्वृत्त के मुख्य बिंदुविवरण
सत्य बोलनाझूठ मानसिक दोष बढ़ाता है
ब्रह्मचर्य पालनमानसिक व शारीरिक बल
दया व करुणामन को शांत करती है
इन्द्रियनिग्रहइन्द्रिय संयम से रोग नहीं होते
आचार्य, माता-पिता व वृद्धों का सम्मानयह शुभ कर्मों में आता है

5. मानसिक आरोग्यता

“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।”
मन यदि संतुलित रहे तो शरीर रोगमुक्त रहता है।


निष्कर्ष (Conclusion)

आयुर्वेद केवल रोग निवारण का साधन नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन का विज्ञान है। यदि हम दिनचर्या, आहार, रहन-सहन, और आचार-विचार को आयुर्वेद के अनुसार ढाल लें, तो जीवन में आरोग्य, सुख, दीर्घायु और मानसिक शांति स्वतः प्राप्त होगी।

चरक संहिता में वर्णित है:

“धर्मार्थकाममोक्षाणां आरोगं मूलं उत्तमम्।”
— चरक संहिता

अर्थात् – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति आरोग्य से ही संभव है। इसलिए आयुर्वेद के सिद्धांतों का पालन कर जीवन को उन्नत बनाना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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