आयुर्वेद मात्र रोगों की चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है। यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलन में रखते हुए दीर्घायु, आरोग्य और आनंददायक जीवन प्रदान करने वाली वैज्ञानिक प्रणाली है।
अर्थात् – स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के विकारों का निवारण करना आयुर्वेद का प्रमुख उद्देश्य है।
Table of Contents
दिनचर्या (Daily Routine) – शरीर और प्रकृति के सामंजस्य का रहस्य
अष्टांग हृदयम् के ‘दिनचर्या अध्याय’ में जीवन के दैनिक क्रियाकलापों का विस्तार से वर्णन किया गया है, ताकि प्रकृति के चक्र के अनुरूप जीवन व्यतीत किया जा सके।
1. ब्राह्म मुहूर्त जागरण (सुबह 4–5 बजे)
ब्रह्ममुहूर्त में उठना आयुर्वेद में श्रेष्ठ माना गया है।
यह समय सत्त्वगुण की वृद्धि, ध्यान, अध्ययन और मानसिक स्पष्टता, चिंतन-मनन के लिए उपयुक्त है।
“हितं मितं यद् आहारं रसेन्द्रियप्रसादनम्।” स्वस्थ शरीर के लिए हितकारी, मितभोजन और पचने योग्य भोजन आवश्यक है।
भोजन के नियम
नियम
विवरण
मिताहार
भूख से थोड़ा कम खाना
गरम एवं ताजा
पकाया हुआ, ताजा और गरम भोजन सबसे उत्तम
तीनों दोषों के अनुसार
वात, पित्त, कफ को संतुलित करने वाला
मौन रहकर भोजन
एकाग्र चित्त से भोजन करना
रहन-सहन (Lifestyle Practices)
1. निद्रा (Sleep)
रात को समय पर सोना (लगभग 9–10 बजे) और ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4-5 बजे उठना श्रेष्ठ माना गया है।
दिन में सोना वर्जित है (कफ वृद्धि करता है), किंतु वृद्ध, बालक, रोगी, व ग्रीष्म ऋतु में अपवाद है।
2. ऋतुचर्या (Seasonal Routine)
सुश्रुत संहिता में ऋतुओं के अनुसार वस्त्र और विहार का वर्णन है।
गर्मियों में हल्के वस्त्र
सर्दियों में गाढ़े और ऊनी वस्त्र
वायुप्रदूषण, धूल, शोर से दूर रहना चाहिए
आयुर्वेद हर ऋतु में जीवनशैली बदलने की सुझाव देता है:
ऋतु
प्रमुख दोष
आहार-चर्या
ग्रीष्म
पित्त
ठंडे पेय, जलविष्य फल
वर्षा
वात
उष्ण, स्निग्ध आहार, पंचकर्म
शरद
पित्त
तिक्त रस, चंद्रमृत स्नान
हेमंत
कफ
घृतयुक्त, भारी भोजन
शिशिर
वात-कफ
व्यायाम, तिल तेल अभ्यंग
वसंत
कफ
शहद, त्रिकटु, व्यायाम
आचार-विचार और मन की शुद्धता (Conduct and Mental Purity)
चरक संहिता और अष्टांग हृदयम् में मानसिक, सामाजिक और धार्मिक आचार पर बल दिया गया है।
“सत्त्वं मनो मलं च” — चरक संहिता
1. सत्संग और सत्य
सत्य भाषण, ईश्वर भक्ति, गुरु सेवा, ब्रह्मचर्य का पालन आदि मानसिक शांति के लिए आवश्यक हैं।
बुरे विचार, कटु वचन, असत्य, छल कपट आदि मानसिक विकारों के कारण बनते हैं।
2. दान और सेवा
नियमित दान, सेवा, अतिथि सत्कार आदि से पुण्य की वृद्धि होती है।
3. ध्यान और प्रार्थना
नित्य योग, ध्यान, मंत्र जाप, और यज्ञ कर्म से मन और आत्मा शुद्ध होते हैं।
4. सद्वृत्त (Good Conduct)
चरक संहिता के अनुसार रोगों का मुख्य कारण मानसिक दोष हैं — राग, द्वेष, क्रोध, मोह आदि। इनसे बचाव के लिए सदाचार अनिवार्य है।
सद्वृत्त के मुख्य बिंदु
विवरण
सत्य बोलना
झूठ मानसिक दोष बढ़ाता है
ब्रह्मचर्य पालन
मानसिक व शारीरिक बल
दया व करुणा
मन को शांत करती है
इन्द्रियनिग्रह
इन्द्रिय संयम से रोग नहीं होते
आचार्य, माता-पिता व वृद्धों का सम्मान
यह शुभ कर्मों में आता है
5. मानसिक आरोग्यता
“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।” मन यदि संतुलित रहे तो शरीर रोगमुक्त रहता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
आयुर्वेद केवल रोग निवारण का साधन नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन का विज्ञान है। यदि हम दिनचर्या, आहार, रहन-सहन, और आचार-विचार को आयुर्वेद के अनुसार ढाल लें, तो जीवन में आरोग्य, सुख, दीर्घायु और मानसिक शांति स्वतः प्राप्त होगी।
अर्थात् – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति आरोग्य से ही संभव है। इसलिए आयुर्वेद के सिद्धांतों का पालन कर जीवन को उन्नत बनाना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।