मानव जीवन में भावनाएँ और वासनाएँ स्वाभाविक हैं, किंतु जब ये अनियंत्रित हो जाती हैं, तो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। सनातन वैदिक धर्मग्रंथों
मानव जीवन में भावनाएँ और वासनाएँ स्वाभाविक हैं, किंतु जब ये अनियंत्रित हो जाती हैं, तो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। सनातन वैदिक धर्मग्रंथों
वेद मानवता के प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जिनमें न केवल आध्यात्मिक ज्ञान है, अपितु एक संतुलित समाज निर्माण की संपूर्ण रूपरेखा भी है। वेदों में वर्णित समाज व्यवस्था मात्र एक वर्गीकरण
“वेद” – एक ऐसा शब्द जो केवल ग्रंथों का नाम नहीं, बल्कि ब्रह्माण्ड के मूल नियमों, चेतना, ध्वनि और ऊर्जा के शाश्वत स्त्रोत का परिचायक है। यह केवल चार पुस्तकों
ऋग्वेद में सूर्य को ब्रह्मांड का नेत्र कहा गया है – जो प्राणदायक भी है और अंधकार का संहारक भी। सूर्य केवल एक खगोलीय पिंड नहीं है, बल्कि यह जीवन,
आयुर्वेद मात्र रोगों की चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है। यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलन में रखते हुए दीर्घायु, आरोग्य और आनंददायक जीवन प्रदान करने वाली
मनुष्य के जीवन में धर्म और अधर्म दो ऐसे पथ हैं जो प्रत्येक क्षण निर्णय की कसौटी पर उसे खड़ा करते हैं। धर्म का मार्ग प्रायः कठिन प्रतीत होता है—संयम,
महान व्यक्तित्व वह नहीं जो धन, बल या प्रसिद्धि से परिभाषित हो, बल्कि वह है जिसमें मानवीय गुणों की सच्ची समझ और अभिव्यक्ति हो। संस्कृत साहित्य और भारतीय दर्शन में
मानव समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए दुष्टों का दमन आवश्यक है। सनातन धर्म के ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि दुष्टों को क्षमा करना या उन्हें
मनुष्य के जीवन में संघर्ष और विरोधाभास सदैव विद्यमान रहते हैं। चाहे वह राजनीति हो, व्यापार हो, या पारिवारिक जीवन, विवादों का समाधान करने के लिए विभिन्न नीतियों का प्रयोग
आजकल संप्रदायों और विभिन्न मतमतांतरों ने धर्म शब्द का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप धर्म के नाम पर अनेक झगड़े हो रहे हैं। यह प्रश्न उठता है







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Kautilya Nalinbhai Chhaya: ગુરુકુળ થી ભારત નિર્માણ શક્ય છે
Kautilya Nalinbhai Chhaya: We Will Implement this in Our Life
Kautilya Nalinbhai Chhaya: I Choose Niskam Karma Not Sanyas