ऋग्वेद में सूर्य को ब्रह्मांड का नेत्र कहा गया है – जो प्राणदायक भी है और अंधकार का संहारक भी। सूर्य केवल एक खगोलीय पिंड नहीं है, बल्कि यह जीवन,
ऋग्वेद में सूर्य को ब्रह्मांड का नेत्र कहा गया है – जो प्राणदायक भी है और अंधकार का संहारक भी। सूर्य केवल एक खगोलीय पिंड नहीं है, बल्कि यह जीवन,
महान व्यक्तित्व वह नहीं जो धन, बल या प्रसिद्धि से परिभाषित हो, बल्कि वह है जिसमें मानवीय गुणों की सच्ची समझ और अभिव्यक्ति हो। संस्कृत साहित्य और भारतीय दर्शन में
विवाह भारतीय संस्कृति में केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि संसार का सबसे पवित्र संस्कार माना गया है। वैदिक साहित्य विवाह को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की
वाणी, मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण शक्तियों में से एक है। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारे विचार, भावनाएँ, और व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है। हमारे प्राचीन शास्त्रों में वाणी
प्राचीन भारतीय परंपराओं में खगोल विज्ञान (एस्ट्रोनॉमी) का विशेष महत्व है। यह ग्रहों, नक्षत्रों, और समय की स्थिति को समझने और उनका मानव जीवन पर प्रभाव देखने का वैज्ञानिक अध्ययन
सनातन धर्म केवल एक धार्मिक पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक पूर्ण विज्ञान और दर्शन है। इसके हर पहलू में व्यक्ति, समाज और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने
भारतीय संस्कृति का मूल तत्व संस्कार हैं। संस्कार जीवन के वे सोपान हैं जो जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के हर चरण को शुद्ध, संतुलित और अर्थपूर्ण बनाते हैं।
संतान उत्पत्ति केवल एक जैविक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह धर्म, समाज और भविष्य की आधारशिला है। वैदिक शास्त्र कहते हैं कि संतान का जन्म संस्कार और धर्म परंपरा को
भारतीय संस्कृति और विवाह परंपरा की गहराई भारत (आर्यावर्त) की संस्कृति और परंपरा विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। यह आर्य संस्कृति और वेदों के
सनातन धर्म के ब्राह्मण ग्रंथ में समुद्र मंथन एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसे केवल देवताओं और असुरों के संघर्ष और सहयोग का वर्णन करने वाली कथा के रूप में नहीं
dr gajanan shankr narkar: thanks aacharya ji for sharing the eternal knowledge..
Manoj kumar jangir: बहुत सुन्दर
Durga Charan Gagrai: इस संसार में पुरुषार्थ मनुष्य जीवन है
Amar Nath Sharma: Very nice