ग्रहण (Eclipse) शब्द सुनते ही रहस्य, उत्सुकता और अनेक मान्यताएँ हमारे मन में उमड़ने लगती हैं। भारतीय परंपरा में ग्रहण को केवल खगोलीय घटना ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक
ग्रहण (Eclipse) शब्द सुनते ही रहस्य, उत्सुकता और अनेक मान्यताएँ हमारे मन में उमड़ने लगती हैं। भारतीय परंपरा में ग्रहण को केवल खगोलीय घटना ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक
संतान उत्पत्ति केवल एक जैविक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह धर्म, समाज और भविष्य की आधारशिला है। वैदिक शास्त्र कहते हैं कि संतान का जन्म संस्कार और धर्म परंपरा को
मनुष्य कर्मशील है। कर्म करते हुए वह या तो धर्मपथ पर चलता है या अधर्म की ओर भटक जाता है। जब अधर्मजन्य कर्म होता है तो उसे शास्त्रों में पाप
भारतीय समाज में “शूद्र” शब्द को लेकर सबसे अधिक भ्रांतियाँ फैली हुई हैं। आम जनमानस में यह धारणा बना दी गई है कि शूद्र का अर्थ “नीच जाति” या “दास”
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में “देवता” शब्द का अत्यंत गहरा और वैज्ञानिक महत्व है। प्रायः लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि “क्या वास्तव में सनातन धर्म
मानव जीवन कर्मप्रधान है। प्रत्येक क्षण हम कर्म करते हैं—चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो या वाचिक। वेद, उपनिषद, गीता, मनुस्मृति और समस्त धर्मशास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि
वर्तमान हिन्दू समाज की सबसे लोकप्रिय धारणा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव को सृष्टि के तीन अलग-अलग देवता माना जाता है — ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता, विष्णु को पालनकर्ता और शिव
भारतवर्ष की राजनीति सदैव धर्म से पोषित रही है। ‘धर्म’ केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि जीवन पद्धति और नीति का आधार है। जब राजनीति से धर्म अलग होता है, तब सत्ता
वर्तमान भारतीय समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है। यह विडंबना ही है कि जिसने संसार को वेद, उपनिषद, शास्त्र और ज्ञान दिए उसी समाज ने वर्ण व्यवस्था को जाति
आज के समाज में जातिवाद एक ऐसी सामाजिक कुरीति बन चुका है, जिसने एकता और वैदिक मूल्यों को गहरा आघात पहुँचाया है। विशेषतः “ब्राह्मण” शब्द को लेकर फैली भ्रांतियाँ समाज
Manoj kumar jangir: बहुत सुन्दर
Durga Charan Gagrai: इस संसार में पुरुषार्थ मनुष्य जीवन है
Amar Nath Sharma: Very nice
Kalpesh M Bhatia: I’m so happy to see that you are giving best knowledge of Shastra and Veda in true form