शिक्षा” (Education) और “ज्ञान” (Knowledge) — दोनों शब्द सुनने में समान लगते हैं, परंतु वैदिक दृष्टि से इनका अर्थ, उद्देश्य और प्रभाव में गहरा अंतर है। आज के युग में
शिक्षा” (Education) और “ज्ञान” (Knowledge) — दोनों शब्द सुनने में समान लगते हैं, परंतु वैदिक दृष्टि से इनका अर्थ, उद्देश्य और प्रभाव में गहरा अंतर है। आज के युग में
आज जब दीपावली का पर्व आता है तो हर पंथ, हर सम्प्रदाय अपनी कल्पना के अनुसार कोई न कोई कथा जोड़ देता है।कोई कहता है — “श्रीरामचन्द्र जी आज के
भारत केवल एक भौगोलिक भूमि नहीं, यह एक संस्कार आधारित चेतना है। इस राष्ट्र की आत्मा “धर्म” है — और धर्म की शिक्षा का केंद्र रहा है गुरुकुल।गुरुकुल वह स्थान
विवाह भारतीय संस्कृति में केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि संसार का सबसे पवित्र संस्कार माना गया है। वैदिक साहित्य विवाह को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की
नवरात्रि केवल नौ दिनों का धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन प्रबंधन, आत्म-शुद्धि और शक्ति साधना का अनोखा उत्सव है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा में यह पर्व हर युग
आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति, केवल रोगों के उपचार की विधि ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला है। इसमें मनुष्य को शरीर (शरीर-शास्त्र), मन (मनोविज्ञान), आत्मा (आध्यात्मिकता) और
ग्रहण (Eclipse) शब्द सुनते ही रहस्य, उत्सुकता और अनेक मान्यताएँ हमारे मन में उमड़ने लगती हैं। भारतीय परंपरा में ग्रहण को केवल खगोलीय घटना ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक
संतान उत्पत्ति केवल एक जैविक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह धर्म, समाज और भविष्य की आधारशिला है। वैदिक शास्त्र कहते हैं कि संतान का जन्म संस्कार और धर्म परंपरा को
मनुष्य कर्मशील है। कर्म करते हुए वह या तो धर्मपथ पर चलता है या अधर्म की ओर भटक जाता है। जब अधर्मजन्य कर्म होता है तो उसे शास्त्रों में पाप
भारतीय संस्कृति का मूल तत्व संस्कार हैं। संस्कार जीवन के वे सोपान हैं जो जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के हर चरण को शुद्ध, संतुलित और अर्थपूर्ण बनाते हैं।







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