
मनुष्य करोड़ों वर्षों से यह प्रश्न पूछता आ रहा है —
“सृष्टि अस्तित्व में क्यों है? आखिर इसकी आवश्यकता क्या थी?”
क्या यह सब एक दुर्घटना है?
क्या यह “कुछ नहीं” से अपने-आप उत्पन्न हो गया?
या इसके पीछे कोई उद्देश्य, चेतना और नियम है?
पश्चिमी दर्शन में जहां सृष्टि को अक्सर संयोग, एसेडेंट, अराजकता, या “बिग बैंग से अचानक जन्म” बताया जाता है,
वहीं वेद ब्रह्मांड को नियमबद्ध, चेतन, अनादि और उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया के रूप में समझाते हैं।
वेद भावनात्मक कथा नहीं बताते, वे सिद्धांत बताते हैं।
वेद चमत्कार नहीं बताते, वे नियम बताते हैं।
वेद आस्था नहीं थोपते, वे समझने की स्वतंत्रता देते हैं।
इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि वैदिक दृष्टि से ब्रह्मांड क्यों अस्तित्व में है —
और इसका उद्देश्य क्या है।
सबसे पहले वेद यह स्पष्ट कर देते हैं कि ब्रह्मांड शून्य से या संयोग से नहीं बना।
ऋग्वेद 10.129 — नासदीय सूक्त सृष्टि के निर्माण का सबसे प्राचीन ज्ञात वैज्ञानिक-दर्शन है।
सूक्त कहता है—
सृष्टि से पहले न अस्तित्व था, न अनस्तित्व।
यह एक ऐसा अवस्था थी जिसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता।
तपस = ऊर्जा का संकेंद्रण
महिना = शक्ति
अजयत = उत्पन्न हुआ
अर्थात — एक केंद्रित ऊर्जा-स्थिति से सृष्टि का उन्मेष हुआ।
यह “बिग बैंग” के वैदिक संस्करण जैसा है, लेकिन उससे भी गहरा क्योंकि वेद यह भी बताते हैं:
सृष्टि का कारण एक चेतन सत्ता (अनादि ब्रह्म) है।
➡ वेद कहते हैं— सृष्टि का कारण ‘चेतना + ऊर्जा’ है।
उपनिषदों की मूल घोषणा है:
ब्रह्म एक है, अद्वितीय है, सर्वत्र है।
हम पूछ सकते हैं —
यदि ब्रह्म पूर्ण है तो सृष्टि क्यों बनाई?
क्या उसे कुछ चाहिए था?
उपनिषद उत्तर देते हैं:
यह “इच्छा-शक्ति” (Iccha Shakti) ब्रह्म का स्वभाव है।
जैसे —
✔ सूरज स्वभाव से प्रकाश देता है
✔ अग्नि स्वभाव से गर्मी देती है
✔ जल स्वभाव से शीतलता देता है
वैसे ही — ब्रह्म स्वभाव से सृष्टि की ओर प्रवाहित होता है।
यह कोई भावनात्मक “लीला” नहीं —
यह उसका स्वभाविक गुण है।

वेदों के बाद सबसे वैज्ञानिक दर्शन है — सांख्य।
सांख्य कहता है:
जैसे ही चेतना प्रकृति पर दृष्टि डालती है, प्रकृति सक्रिय हो जाती है और —
✔ महत
✔ अहंकार
✔ तन्मात्राएँ
✔ पंचमहाभूत
✔ इन्द्रियाँ
✔ मन
✔ ब्रह्मांड
— क्रमशः प्रकट होते जाते हैं।
यह ठीक वैसा ही है जैसे आज का क्वांटम फील्ड थ्योरी कहता है कि
चेतना (observer effect) ऊर्जा को रूप देता है।
सृष्टि इसलिए है क्योंकि प्रकृति की ऊर्जा, चेतना के संपर्क में आते ही रूप लेना प्रारंभ करती है।
यह सबसे महत्वपूर्ण वैदिक उत्तर है।
उपनिषदों और गीता में स्पष्ट है —
इस ब्रह्मांड का एक उद्देश्य है:
आत्मा का विकास और मोक्ष।
जीव प्रारब्ध, संचित, क्रियमाण कर्मों के आधार पर जन्म लेता है।
कर्म फल प्राप्त करता है।
अनुभवों से सीखता है।
ज्ञान प्राप्त करता है।
और अंततः ब्रह्म में वापस लीन हो जाता है।
उपनिषद कहते हैं:
अस्तित्व का उद्देश्य कर्म और उसके द्वारा आत्मा का उन्नयन है।
“जो इस कर्म-चक्र को नहीं समझता, वह पापी होकर व्यर्थ जीवन जीता है।”
इसलिए ब्रह्मांड एक “आध्यात्मिक प्रयोगशाला” है —
जहाँ आत्मा सीखती है, बढ़ती है और मुक्त होती है।
वेद बार-बार कहते हैं—
ब्रह्मांड इसलिए है क्योंकि “ऋत” है।
ऋत = Universal Law = Cosmic Order
“सूर्य ऋत के नियम से चलता है, चंद्रमा ऋत के नियम से स्थापित है।”
ऋत के नियम:
✔ गुरुत्वाकर्षण
✔ गति के नियम
✔ प्रकाश के नियम
✔ ऊष्मा का प्रवाह
✔ जीवन का चक्र
✔ जल चक्र
✔ जन्म-मरण
सब इसी महान ऋत के भाग हैं।
➡ ब्रह्मांड इसलिए है क्योंकि उसे चलाने वाले नियम हैं।
➡ और वे नियम इसलिए हैं क्योंकि ब्रह्म चेतन है।
वेदांत का सिद्धांत है:
गीता 9.7–9.8 में कृष्ण कहते हैं:
“प्रलय में सब ब्रह्म में लीन होते हैं।
सृष्टि में ब्रह्म उन्हें प्रकृति के माध्यम से पुनः उत्पन्न करता हूँ।”
यह चक्र अनंत है।
यह बिग बैंग → विस्तार → संकुचन → बिग क्रंच → पुनः बिग बैंग जैसा है।
ब्रह्मांड अस्तित्व में है क्योंकि यह अनंत सृष्टि-चक्र का एक चरण है।
वेद कहते हैं कि सृष्टि…
✔ संयोग नहीं
✔ अराजकता नहीं
✔ दुर्घटना नहीं
✔ बेतुका खेल नहीं
बल्कि —
यजुर्वेद 40.14 कहता है:
अर्थात — सृष्टि इसलिए है ताकि ज्ञान प्रकट हो सके।
वेद कहते हैं —
ईश्वर पूर्ण है। उसे कोई आवश्यकता नहीं।
तो फिर?
जैसे कविता, कवि से प्रवाहित होती है,
वैसे ही सृष्टि ब्रह्म से प्रवाहित होती है। सृष्टि रचना ब्रह्म का स्वाभाविक गुण है I
वेद कहते हैं:
1️⃣ ब्रह्मांड ऊर्जा-केंद्रित अवस्था से बना → Big Bang
2️⃣ ब्रह्मांड में चेतना है → Quantum Consciousness
3️⃣ ब्रह्मांड चक्रीय है → Contraction–Expansion Cycles
4️⃣ नियम-आधारित है → Physical Laws = ऋत
5️⃣ Observer प्रभाव महत्वपूर्ण → Sankhya Purusha
आज भौतिक विज्ञानी भी मानते हैं कि —
सृष्टि fine-tuned है।
यदि नियमों में सूक्ष्म भी अंतर होता,
तो जीवन संभव नहीं होता।
यह वैदिक घोषणा को प्रमाणित करता है:
यह उत्तर न केवल दार्शनिक है —
यह वैज्ञानिक, तार्किक और मनोवैज्ञानिक भी है।
हम यह समझ लें:
✔ सृष्टि आपका शत्रु नहीं है
✔ यह एक उद्देश्यपूर्ण व्यवस्था है
✔ यहाँ आपका जन्म आकस्मिक नहीं
✔ आपका जीवन अर्थपूर्ण है
✔ आपका अनुभव मूल्यवान है
✔ आपकी चेतना अनंत है
और सबसे बड़ी बात —
यही वैदिक सत्य है।
यही सनातन विज्ञान है।
यही आत्मबोध की यात्रा का प्रारंभ है।







