वर्तमान हिन्दू समाज की सबसे लोकप्रिय धारणा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव को सृष्टि के तीन अलग-अलग देवता माना जाता है — ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता, विष्णु को पालनकर्ता और शिव को संहारकर्ता। यह दृष्टिकोण मुख्य रूप से पुराणों और कथाओं पर आधारित है, जिसमें इन तीनों शक्तियों का मानवीकरण (personification) कर उन्हें अलग-अलग मूर्तियों और व्यक्तित्वों के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
लेकिन यदि हम 4 वेद — जो सनातन धर्म के मूल स्रोत हैं — को देखें, तो वहां ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीन अलग-अलग देवता नहीं, बल्कि एक ही निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक परमात्मा के तीन मुख्य कार्य हैं:
इस विस्तृत लेख में हम वेदों के प्रमाण, मंत्र, व्याख्या, दार्शनिक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक संदर्भ के साथ यह समझेंगे कि इन तीन नामों का वास्तविक वेदिक अर्थ क्या है।
वेदों का मुख्य सिद्धांत है — “एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति”
ऋग्वेद 1.164.46
“एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति, अग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः।”
अर्थ: सत्य (ईश्वर) एक ही है, ऋषि उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं — अग्नि, यम, मातरिश्वा आदि।
यह मंत्र स्पष्ट करता है कि ईश्वर के विभिन्न कार्यों और गुणों के लिए अलग-अलग नाम रखे जा सकते हैं, लेकिन ईश्वर एक ही है। ब्रह्मा, विष्णु और शिव इसी सिद्धांत के अंतर्गत आते हैं।
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
अर्थ: प्रारंभ में केवल हिरण्यगर्भ (सृष्टि का बीज रूप) था। वही सब प्राणियों का स्वामी था। उसी ने आकाश और पृथ्वी को धारण किया। हम उसी एकमात्र देव को पूजते हैं।
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्।
दिवं च पृथिवीं चान्तरीक्षं सधस्थम्॥
अर्थ: धाता (सृष्टिकर्ता) ने सूर्य और चंद्रमा को उनके स्थान पर स्थापित किया तथा आकाश, पृथ्वी और मध्यलोक का निर्माण किया।
विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे।
इन्द्रस्य युज्यः सखा॥
अर्थ: विष्णु के उन कर्मों को देखो, जिन्होंने तीनों लोकों में धर्म की स्थापना की है। वह इन्द्र का सहचर है।
तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः।
दिवीव चक्षुराततम्॥
अर्थ: ज्ञानी पुरुष उस विष्णु के परम पद को सदा देखते हैं, जो आकाश में फैले सूर्य के समान सर्वव्यापी है।
नमः शिवाय च शिवतराय च। यजुर्वेद 16.41
अर्थ: शिव (कल्याणकारी) को और उससे भी अधिक कल्याणकारी को नमस्कार है।
नमो रुद्रायाततायिन इषवे नमः। यजुर्वेद 16.5
अर्थ: रुद्र (जो दुखों और पापों का नाश करता है) को नमस्कार है।
नाम | वेदों में अर्थ | कार्य |
---|---|---|
ब्रह्मा | सृष्टि रचना की शक्ति | सृष्टि करना |
विष्णु | सर्वव्यापक पालन शक्ति | सृष्टि का पालन व धर्म की रक्षा |
शिव | कल्याणकारी विनाश शक्ति | संहार व पुनः सृजन की तैयारी |
वेदों का संदेश स्पष्ट है —
ईश्वर एक ही है, वह निराकार, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान है। उसके विभिन्न कार्यों के लिए हम अलग-अलग नाम लेते हैं, लेकिन वह विभाजित नहीं होता। जैसे – एक ही व्यक्ति किसी के लिए पिता, भाई, पति, मामा, काका, आदि है उसी प्रकार एक ही परमात्मा के, गुण एवं कर्मो के अनुसार भिन्न भिन्न नाम है I
यजुर्वेद 40.8
शुद्धमपापविद्धम्।
अर्थ: वह परमात्मा पवित्र है, पापरहित है, सबमें व्याप्त है।
यदि आपने इस लेख में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के वेदिक स्वरूप को समझा, तो आप देख चुके हैं कि वेद केवल पूजा-पाठ का ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का पूर्ण विज्ञान है।
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